सामाजिक नीति नियोजन - अर्थ, तत्व ,सिधांत , विशेषताए , उपयोग , महत्त्व , सामाजिक कार्य


सामाजिक नीति अर्थ

ऐसी नीति जो समाज की आवश्यकता, संरचना एवं समस्या के अनुसार तैयार की जाती है जिसका मुख्य उद्देश्य समाज का कल्याण एवं समाज का विकास करना होता है

ऐसी अनुमानित स्थितियां जो भविष्य में आ सकती है उन स्थितियों में कार्य करने के लिए सामाजिक नीति हमें निर्देशित करती है अर्थात भविष्य में आने वाले अपरिचित हालातों में निर्णय लेने के लिए सामाजिक नीति हमें सिद्धांतों की पहचान कराती है ताकि हम उन अपरिचित हालातों में सही निर्णय ले सके । अतः सामाजिक नीति भविष्य में कार्य करने की एक निर्देशिका होती है । सामाजिक एवं आर्थिक स्तर को बनाए रखने के लिए सामाजिक नीति एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है । सामाजिक संस्थाओं में सामाजिक नीति के निर्धारण से उस संस्था की प्रकृति, संरचना एवं कार्यों का निर्धारण किया जाता है

सामाजिक नीति का लक्ष्य शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, तथा सामाजिक सुरक्षा के लिए मानवीय जरूरतों को पूरा करना होता है

सामाजिक नीति के महत्वपूर्ण क्षेत्र :-
  1. सामाजिक सुरक्षा
  2. बेरोजगारी बीमा
  3. पेंशन
  4. स्वास्थ्य सुरक्षा
  5. सामाजिक आवास
  6. बालक संरक्षण
  7. शिक्षा नीति
  8. अपराध तथा अपराधिक न्याय आदि होते हैं

सामाजिक नीति का संबंध :-

1. सामाजिक समस्याओं से
2. सामाजिक कल्याण से
3. सामाजिक , आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण
4. व्यक्ति, समाज, और समाज कल्याण से संबंधित विचार

सामाजिक नीति के कार्य, विशेषताएं या उपयोग :-

1. समाजिक नीति का उपयोग सामाजिक संस्थान और बाजार संस्थानों को विनिमय करने के लिए किया जाता है
2. सामाजिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए
3. भूमि सुधार के लिए
4. सामाजिक कानून
5. कल्याण उपाय
6. सामाजिक संसाधनों का पुनर वितरण
7. एक विशेष वर्ग से दूसरे वर्ग में संसाधनों का हस्तांतरण
8. सभी वर्ग में सामाजिक न्याय और अवसरों की समानता स्थापित करना
9. कमजोर और गरीब व्यक्तियों को समाज में समान अधिकार दिलाना
10. शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा

सामाजिक नीति के तत्व :-

1. उद्योग नीति - सैनिक साजो सामान परमाणु ऊर्जा खनन आदि विशेष क्षेत्रों को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों के उद्योगों को निजी उद्योगपति के लिए छोड़ दिया गया है
2. श्रमिकों की सुरक्षा - सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों की सुरक्षा हेतु सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था प्रारंभ करना तथा उनके पुनर्वास आदि की व्यवस्था करना
3. समानता की नीति - समाज के विभिन्न वर्गों के बीच समानता स्थापित करना
4. जनता की भागीदारी सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योगों के कुछ अंश आम जनता को बेचे जाते हैं जिससे सार्वजनिक क्षेत्र के अंश बाजार में क्रय-विक्रय के लिए उपलब्ध होते हैं
5. लक्ष्य की प्राप्ति सुरक्षित जीवन के लिए निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कार्य करना
6. भूमि सुधार एवं कृषि कार्यक्रम
7. शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम
8. मानवी आवश्यकता एवं न्याय के क्षेत्र में कार्य करना


सामाजिक नियोजन :-

भविष्य में आने वाली परिस्थितियों का पूर्वानुमान करके किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्यक्रम बनाने की विधि को नियोजन कहते हैं
उदाहरण के लिए यदि हम कोई कार्य प्रारंभ करते हैं तब भविष्य में उस कार्य के लक्ष्य प्राप्त करने में आने वाली परेशानियां या बदलाव आदि का पहले ही पूर्वानुमान करके उस कार्य के लक्ष्य प्राप्ति के लिए नियोजन ( Planning Work ) कार्यक्रम तैयार करते हैं

नियोजन की आवश्यकता है :-
1. मानव आवश्यकताओं के लिए - समाज की तरक्की और मानव की बढ़ती हुई आवश्यकताओं के लिए सामाजिक परिवर्तन का नियोजन आवश्यक है
2. कल्याण राज्य के लिए - गरीब और पिछड़े वर्ग के लोगों की सुरक्षा के लिए नियोजित सामाजिक परिवर्तन आवश्यक है
3. इच्छित परिवर्तन लाने के लिए - यदि हम हमारी इच्छा अनुसार परिवर्तन लाना चाहते हैं तो हमें उस परिवर्तन के लिए नियोजन करना आवश्यक है
4. साधनों के सही प्रयोग के लिए - नियोजन के द्वारा हम प्राकृतिक सामाजिक साधनों का सही उपयोग कर सकते हैं नियोजन के द्वारा ही हमें ज्ञात होता है कि उन साधनों का उपयोग कहां और किस प्रकार करना है
5. संतुलित विकास के लिए - नियोजन के द्वारा ही समाज में सभी का समान रूप से विकास संभव है
6. कार्य के निर्देशन के लिए - कार्य का नियोजन कार्य को पूर्ण करने के लिए उसका मार्गदर्शन करता है जैसे कि कार्य को किस प्रकार करना है जिससे कि शीघ्रता से उसके लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके
7. जोखिम को कम करने के लिए - किसी भी कार्य का पहले से नियोजन करने से उस कार्य में आने वाली परेशानियों के जोखिम से बचा जा सकता है
8. सही निर्णय लेने में - किसी भी कार्य के लिए भविष्य में कोई निर्णय लेना हो तो नियोजन उसमें सहायता करता है
9. निर्धारण एवं लक्ष्य की प्राप्ति के लिए - नियोजन के द्वारा हम किसी भी कार्य का लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं एवं लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नियोजन बहुत आवश्यक है

नियोजन के सिद्धांत :-

1. उद्देश्य प्राप्ति का सिद्धांत - इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी कार्य का नियोजन इस प्रकार होना चाहिए कि वह उस कार्य के उद्देश्य प्राप्ति में सहायक हो
2. मान्यता का सिद्धांत - किसी भी कार्य को करने के लिए कुछ मान्यता और नियमों का पालन करना आवश्यक होता है इसीलिए उन नियमों को ध्यान में रखते हुए उस कार्य का नियोजन करने से कार्य को आसानी से किया जा सकता है
3. लागत का सिद्धांत - किसी भी कार्य का नियोजन इस प्रकार होना चाहिए की न्यूनतम लागत के द्वारा उस कार्य के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके
4. परिवर्तन का सिद्धांत - नियोजन परिवर्तनशील होना चाहिए ताकि भविष्य की समस्याओं एवं परिस्थितियों के अनुसार नियोजन को परिवर्तित किया जा सके
5. समय का सिद्धांत - इस सिद्धांत के अनुसार समय का ध्यान में रखते हुए नियोजन किया जाना चाहिए ताकि लक्ष्य प्राप्ति समय पर की जा सके
6. सर्वव्यापी का सिद्धांत - सभी स्तरों को ध्यान में रखते हुए नियोजन किया जाना चाहिए





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